क्या है राहू केतू के उपाय ?
इस दोष के कुप्रभावों से बचने के लिए जातक अपने जीवन शैली के अनुसार उपाय करवा सकता है | राहू केतू के उपायों में सर्वोत्तम है भगवान शिव की आराधना करना| यदि जातक शिव की आराधना करने हेतु नासिक शहर के समीप स्थित त्रयंबकेश्वर मंदिर पहुँचता है और काल सर्प योग नामक पूजा करता है तो उसे इस दोष से मुक्ति मिल सकती है | यह पूजा किसी विद्वान पंडित के देख रेख में संपन्न होनी चाहिए | ऐसे ही किसी जानकार पंडित से पहले आप अपनी कुंडली के अनुसार पूजा का मुहूर्त तय कर लें | हम आपको इस पूजा को श्री रवि शंकर गुरु जी से करवाने का सुझाव देंगे | गुरु जी को इस पूजा का अपार अनुभव प्राप्त है और शास्त्रों एवं कर्मकांडो के महाज्ञाता भी है |
इस पूजा से पहले आपको अपनी जन्मकुंडली पंडित जी से साझा करके उनके राय जाननी चाहिए | इस निशुल्क जानकारी में पंडित जी आपकी कुंडली में उपस्थित दोषों एवं उनके निराकरणों के बारे में विस्तार से बताएँगे | इस पूजा के अलावा पंडित जी आपको अन्य उपाय जैसे नित्य शिव पूजा, मंत्रोच्चारण, पीपल के वृक्ष की पूजा आदि के बारे में भी बताएँगे |
कुछ जातक थोड़ी सी जानकारी के पश्चात खुद ये निर्णय ले लेते है कि उनके क्या करना चाहिए या फिर क्या नहीं | हालांकि हम सब यह मानते है कि हर विषय में राय किसी ज्ञाता से ही लेनी चाहिए | इससे समय भी बचता है और समय पर आपको परेशानी का उचित हल भी मिल जाता है | यदि आप अपना समय और पैसा बचते हुए इस दोष का हल चाहते है तो आप तुरंत पंडित श्री रविशंकर जी से निशुल्क राहु केतु दोष निवारण पूजा कि जानकारी ले सकते है |
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क्या होता है राहु केतु दोष?
राहु केतु दोष किसी जातक की कुंडली में एक अभिशाप के समान होता है | ऐसे काल सर्प योग या काल सर्प दोष भी कहा जाता है | इस दोष के परिणाम जातक के जीवन में बड़े भयंकर हो सकते है जिससे जातक को साधारण जीवन जीने में भी समस्या हो सकती है |
कुंडली में ग्रहो की दशा यह निर्धारित करती है की राहु केतु दोष के दुष्प्रभाव क्या होंगे तथा वो प्रभाव कितने भयंकर साबित होंगे | ज्योतिष शास्त्रों में इसके बारे में लिखा गया है | इसके दुष्परिणाम से बचने के लिए राहु केतु पूजा भी करते है
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राहु केतु दोष का इतिहास
हिन्दू मान्यताओं में राहु और केतु समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए है | समुद्र मंथन के समय अमृत भी प्राप्त हुआ जो की देवताओं को दिया जाना तय हुआ किन्तु स्वरभानु नामक राक्षस ने छल से देव रूप में आकर अमृतपान कर लिया और वह अमर (जिसे मृत्यु न हो ) हो गया | देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने महिला रूप में ( मोहिनी ) आकर स्वरभानु की गर्दन धड़ से अलग कर दी | यही गर्दन राहु और बाकी का शरीर केतु के नाम से जाना जाता है | राहु और केतु जब ऐसे ही ब्रह्माण्ड में तैर रहे थे, वे एक सर्प से जुड़ गए | राहु सर्प का सर और केतु सर्प की पूँछ से जुड़ा और यही वजह है कि राहु-केतु को भारतीय ज्योतिषशास्त्र में सर्प की संज्ञा दी गयी |
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कैसे होता है राहु केतु दोष ?
जब किसी जातक की कुंडली में उसके सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते है, जिसमे राहु सर और केतु पूँछ की तरफ होता है, इस तरह की दशा में जातक की कुंडली में राहु केतु दोष माना जाता है | जो ग्रह और केतु के बीच होते है और अलग अलग घर में जा सकते है और उनके घरों की स्थिति के हिसाब से इस दोष के प्रभाव होते है | इस दोष से रहित जातक के जीवन में बहुत सारी बाधाएं उत्पन्न होती है, यही कारण है कि इस दोष को इतना बुरा समझा जाता है | यह दोष ग्रहों की स्तिथि के अनुसार १२ प्रकार से होता है |
क्या है राहु केतु दोष से होने वाली समस्याएं ?
जिस जातक की कुंडली में यह दोष होता है, वह अपने जीवन में कई बाधाओं से घिरा रहता है | इन समस्याओं में प्रमुखतः शादी में रुकावट / देरी , वैवाहिक जीवन में तनाव, व्यापार में हानि, नौकरी पाने में दिक्कत, स्वास्थय सम्बन्धी परेशानियां, मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी हैं |
जातक अपने अथक प्रयास के वाबजूद भी इच्छानुसार सफलता नहीं पाता और इससे उसको लगातार निराशा का सामना करना होता है | जातक के मन में कई बार ऐसे विचार उत्पन्न होते है कि आखिर उसे ही क्यों निराशा का सामना कर पड़ता है ? यदि वह नौकरी करे तो वह उसे पदोनत्ति में देरी होती है या फिर लगातार अपनी नौकरी का स्थान बदलना पड़ता है | यदि वह व्यवसाय करे तो उसे लगातार हानि होती है | इससे उसके जीवन में अड़चन पैदा होती है | उसे मानसिक और शारीरिक कष्ट होते है |